/ Apr 19, 2025
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रायपुर। मेहनत, सही दिशा और सरकारी सहयोग से कोई भी किसान अपनी किस्मत बदल सकता है। जशपुर विकासखंड के ग्राम जिलिंग के किसान सेवाराम की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिन्होंने कृषि विभाग की योजनाओं का सही लाभ उठाकर अपने खेतों में हरियाली बिखेरी और अपने परिवार के सपनों को साकार किया।
सेवाराम के पास 2.8 हेक्टेयर कृषि भूमि थी, जहां वे वर्षों से परंपरागत तरीके से खेती कर रहे थे। वे मुख्य रूप से देशी धान और अन्य फसलें उगाते थे, लेकिन उत्पादन कम होने के कारण मेहनत के अनुरूप लाभ नहीं मिल पा रहा था। हर साल लागत ज्यादा और मुनाफा कम होने से उनका मनोबल गिरता जा रहा था।
सेवाराम की किस्मत तब बदली, जब उन्होंने कृषि विभाग से संपर्क किया। ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी ने उन्हें सही मार्गदर्शन दिया और किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने में मदद की। इसके माध्यम से उन्हें रासायनिक खाद और बैंक लोन की सुविधा मिली, जिससे उनकी खेती में बड़ा बदलाव आया। इसके अलावा, कृषि विभाग की सहायता से सेवाराम को उच्च गुणवत्ता वाले धान (एम.टी.यू. 1256), उड़द (प्रक्ष उड़द-1), अरहर (सी.जी. अरहर) और रागी बीज प्राप्त हुए। नई तकनीकों और वैज्ञानिक खेती के तरीकों को अपनाने से उनकी फसलों की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
इस साल उनकी मेहनत रंग लाई और फसल उत्पादन पिछले साल की तुलना में कहीं अधिक हुआ। इस सफलता से उत्साहित सेवाराम ने कहा, पहले लागत ज्यादा थी, लेकिन आमदनी कम होती थी। अब सरकारी योजनाओं के सहारे खेती करना आसान और लाभकारी हो गया है। इस बार अच्छी फसल से हुई आमदनी से मैंने अपने घर के निर्माण का सपना पूरा किया है।
कृषि विभाग की योजनाओं से मिली सहायता और उनकी मेहनत की बदौलत आज सेवाराम न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत हुए हैं, बल्कि वे अपने गांव के अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा बन गए हैं। उन्होंने अपनी सफलता के लिए मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय और कृषि विभाग को धन्यवाद देते हुए कहा कि अगर सरकार इसी तरह किसानों का साथ देती रही, तो हर किसान उन्नति की राह पर आगे बढ़ सकेगा।
रायपुर। मेहनत, सही दिशा और सरकारी सहयोग से कोई भी किसान अपनी किस्मत बदल सकता है। जशपुर विकासखंड के ग्राम जिलिंग के किसान सेवाराम की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिन्होंने कृषि विभाग की योजनाओं का सही लाभ उठाकर अपने खेतों में हरियाली बिखेरी और अपने परिवार के सपनों को साकार किया।
सेवाराम के पास 2.8 हेक्टेयर कृषि भूमि थी, जहां वे वर्षों से परंपरागत तरीके से खेती कर रहे थे। वे मुख्य रूप से देशी धान और अन्य फसलें उगाते थे, लेकिन उत्पादन कम होने के कारण मेहनत के अनुरूप लाभ नहीं मिल पा रहा था। हर साल लागत ज्यादा और मुनाफा कम होने से उनका मनोबल गिरता जा रहा था।
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