News Elementor

RECENT NEWS

परम धर्म वह हैं जेा परमात्मा की ओर ध्यान आकृष्ट करायें- आचार्य शर्मा

राजनांदगांव। गोवर्धन पर्वत वृंदावन में है गो अर्थात इंद्रियों का वर्धन, जो इंद्रियों का वर्धन करें इसका एक अर्थ गौ माता बढाने से भी है। सात दिन सात रात्रि सात वर्ष की आयु में सात कोस के गोर्वधन पर्वत को भगवान कृष्ण ने धारण किया अर्थात जब हम सोते है जागते है। तब हर समय कृष्ण रूपी आत्मा धारण किये रहते है। सबकी आत्मा कृष्ण है। सर्वत्र कृष्ण द्वारा ही पोषण हो रहा है। अनेक लोक इस पर प्रश्न करते है, ऐसा वे ही लोग करते है जो प्रभु की सत्ता को नही मानते एवं अधर्मी है। गोर्वधन परिक्रमा में आज भी अनेक एतिहासिक चिन्ह अंकित है जो अपनी सच्चाई को प्रकट करते है यह प्रभु की लीला स्थली है नीधि वन में आज भी परमब्रम्ह परमेश्वर रासलीला करते है। इसलिये रात्रि में वहां कोई नही रूकता। सर्वत्र प्रभु है वे 24 घंटे अंर्तकरण में विराजते है विशाल आदिनारायण सभी में है। भक्त प्रहलाद ने भी ये कहा था, तभी उसके वचनों का मान रखने प्रभु ख्ंाभें से प्रकट हुये । प्रभु के अंदर सुषुप्त चेतना है। बडी संवेदनशीलता है सृष्टि में सभी कार्य विधि पुर्वक संम्पन्न हो रहे है। सुर्य अपने समय से उगता है। सृष्टि का चक्र बरसात, गर्मी, ठण्ड अपने समय से आती है। सबकुछ परमब्रम्ह के नियत्रंण में है। प्रभु कहते है सबकुछ मेंरे अनुसार चलता है। उक्त उदगार आज श्री अग्रसेन भवन में आयोजित श्रीमदभागवत सप्ताह के छठवें दिन व्यासपीठ पर विराजित आचार्य अर्पित भाई शर्मा ने व्यक्त किये।
पंडित शर्मा ने कहा कि कहा जाता है सफलता की सीढी चढने के लिये सुर्योदय के पूर्व उठना चाहिये सारा विधि नियम परमात्मा है। प्रभु भक्ति के पराधिन हो जाते है तब भक्त को सुख देने के लिये सारे बंधंन तोड देते है। भक्ति के नौ प्रकार बताये गये है – श्रवण, किर्तन, स्मरण, चरण सेवा, अर्चना, वंदन, दासत्व, सखा, आत्मानिवेदन या शरणागति। सात भक्ति हमारे हाथ में है किन्तु सखा एवं चरणसेवा प्रभु के हाथ में हे। कृष्ण का एक नाम केशव है। इसका तात्पर्य शव कौन है। अर्थात केशव भक्ति से हीन व्यक्ति शव के समान है। मथुरा का अर्थ हे – बीच का थु हटाकर म को अंतिम अक्षर के आगे लिखा जाये तो राम होगा और राम को नही मानने वाला वह तीसरा अक्षर थु है। वात्सल्य भाव भी भक्ति का एक प्रकार है। जिनके संतान नही होती यदि वे लडडुगोपाल की पुत्र रूप में सेवा भक्ति करते है। तो संतान अवश्य प्राप्त होती है। उधव जी ने वैर भाव को भी भक्ति का अंग बताया है।
कथा प्रसंग को आगे बढाते हुये पुज्य अर्पित भाई ने गोसाई गोविंद दास जी एवं ठाकुर जी के द्वारा की गई लीला अनेक प्रसंगो को विस्तृत रूप से बताया श्रेष्ठतम भक्ति वह है जो परमेश्वर का साक्षात्कार करादे ठाकुर जी प्रेम बंधन में बंध कर सभी नियमों को तोडते हुये अपने सखाओं को बैकुंठ धाम की यात्रा कराते है। प्रभु जब बृज में आये तब बृज कुमारी कालिंदी (यमुना जी ) की शरण मे गये यमुना जी भक्ति स्वरूपा है वस्त्र वासना के प्रतिक है, गोपियां हमारी इंद्रियों का प्रतिक है जो वासना से गृसित हैं। हमारे मन को दुषित हाने से बचाने के लिये प्रभु वासनाओं का हरण कर लेते है। यहीं वस्त्र हरण का सार है।

राजनांदगांव। गोवर्धन पर्वत वृंदावन में है गो अर्थात इंद्रियों का वर्धन, जो इंद्रियों का वर्धन करें इसका एक अर्थ गौ माता बढाने से भी है। सात दिन सात रात्रि सात वर्ष की आयु में सात कोस के गोर्वधन पर्वत को भगवान कृष्ण ने धारण किया अर्थात जब हम सोते है जागते है। तब हर समय कृष्ण रूपी आत्मा धारण किये रहते है। सबकी आत्मा कृष्ण है। सर्वत्र कृष्ण द्वारा ही पोषण हो रहा है। अनेक लोक इस पर प्रश्न करते है, ऐसा वे ही लोग करते है जो प्रभु की सत्ता को नही मानते एवं अधर्मी है। गोर्वधन परिक्रमा में आज भी अनेक एतिहासिक चिन्ह अंकित है जो अपनी सच्चाई को प्रकट करते है यह प्रभु की लीला स्थली है नीधि वन में आज भी परमब्रम्ह परमेश्वर रासलीला करते है। इसलिये रात्रि में वहां कोई नही रूकता। सर्वत्र प्रभु है वे 24 घंटे अंर्तकरण में विराजते है विशाल आदिनारायण सभी में है। भक्त प्रहलाद ने भी ये कहा था, तभी उसके वचनों का मान रखने प्रभु ख्ंाभें से प्रकट हुये । प्रभु के अंदर सुषुप्त चेतना है। बडी संवेदनशीलता है सृष्टि में सभी कार्य विधि पुर्वक संम्पन्न हो रहे है। सुर्य अपने समय से उगता है। सृष्टि का चक्र बरसात, गर्मी, ठण्ड अपने समय से आती है। सबकुछ परमब्रम्ह के नियत्रंण में है। प्रभु कहते है सबकुछ मेंरे अनुसार चलता है। उक्त उदगार आज श्री अग्रसेन भवन में आयोजित श्रीमदभागवत सप्ताह के छठवें दिन व्यासपीठ पर विराजित आचार्य अर्पित भाई शर्मा ने व्यक्त किये।
पंडित शर्मा ने कहा कि कहा जाता है सफलता की सीढी चढने के लिये सुर्योदय के पूर्व उठना चाहिये सारा विधि नियम परमात्मा है। प्रभु भक्ति के पराधिन हो जाते है तब भक्त को सुख देने के लिये सारे बंधंन तोड देते है। भक्ति के नौ प्रकार बताये गये है – श्रवण, किर्तन, स्मरण, चरण सेवा, अर्चना, वंदन, दासत्व, सखा, आत्मानिवेदन या शरणागति। सात भक्ति हमारे हाथ में है किन्तु सखा एवं चरणसेवा प्रभु के हाथ में हे। कृष्ण का एक नाम केशव है। इसका तात्पर्य शव कौन है। अर्थात केशव भक्ति से हीन व्यक्ति शव के समान है। मथुरा का अर्थ हे – बीच का थु हटाकर म को अंतिम अक्षर के आगे लिखा जाये तो राम होगा और राम को नही मानने वाला वह तीसरा अक्षर थु है। वात्सल्य भाव भी भक्ति का एक प्रकार है। जिनके संतान नही होती यदि वे लडडुगोपाल की पुत्र रूप में सेवा भक्ति करते है। तो संतान अवश्य प्राप्त होती है। उधव जी ने वैर भाव को भी भक्ति का अंग बताया है।
कथा प्रसंग को आगे बढाते हुये पुज्य अर्पित भाई ने गोसाई गोविंद दास जी एवं ठाकुर जी के द्वारा की गई लीला अनेक प्रसंगो को विस्तृत रूप से बताया श्रेष्ठतम भक्ति वह है जो परमेश्वर का साक्षात्कार करादे ठाकुर जी प्रेम बंधन में बंध कर सभी नियमों को तोडते हुये अपने सखाओं को बैकुंठ धाम की यात्रा कराते है। प्रभु जब बृज में आये तब बृज कुमारी कालिंदी (यमुना जी ) की शरण मे गये यमुना जी भक्ति स्वरूपा है वस्त्र वासना के प्रतिक है, गोपियां हमारी इंद्रियों का प्रतिक है जो वासना से गृसित हैं। हमारे मन को दुषित हाने से बचाने के लिये प्रभु वासनाओं का हरण कर लेते है। यहीं वस्त्र हरण का सार है।

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using ‘Content here, content here’, making it look like readable English. Many desktop publishing packages and web page editors now use Lorem Ipsum as their default model text, and a search for ‘lorem ipsum’ will uncover many web sites still in their infancy.

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using ‘Content here, content here’, making it look like readable English. Many desktop publishing packages and web page editors now use Lorem Ipsum as their default model text, and a search for ‘lorem ipsum’ will uncover many web sites still in their infancy.

The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using ‘Content here, content here’, making

The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using ‘Content here, content here’, making it look like readable English. Many desktop publishing packages and web page editors now use Lorem Ipsum as their default model text, and a search for ‘lorem ipsum’ will uncover many web sites still in their infancy.

rahul choubey

RECENT POSTS

CATEGORIES

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

SUBSCRIBE US

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution

Copyright BlazeThemes. 2023