/ Jul 14, 2025
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बालोद। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सहयोग से राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर बालोद में आयोजित कार्यक्रम में व्याख्यान देते हुए प्रदेश के वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ एवं अन्धश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ.दिनेश मिश्र ने कहा वैज्ञानिक ढंग से सोचने, समझने एवं आचरण करने से समाज में वैज्ञानिक जागरूकता का विकास होगा. वैज्ञानिक जागरूकता के विकास से विभिन्न अंधविश्वासों व कुरीतियों का निर्मूलन संभव है। किसी व्यक्ति को अपनी बीमारी, समस्या या असफलता का दोष ग्रह-नक्षत्रों पर न थोपने की बजाय स्वयं की खामियों पर विश्लेषण करना चाहिए। कोरोना काल में सावधानी और सतर्कता ,गाइड लाइन का पालन करने से देश में कोरोना का संक्रमण जल्द ही नियंत्रण में आया,
डॉ. मिश्र ने कहा आमजन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए लगातार कार्यक्रम संचालित करने की आवश्यकता है . किसी भी व्यक्ति को बचपन से ही अक्षर ज्ञान के साथ तर्क सम्मत जानकारी व सामाजिक अंधविश्वासों व कुरीतियों के संबंध में सचेत किया जाना चाहिए। हमारे देश के विशाल स्वरूप में अनेक जाति, धर्म के लोग है जिनकी परंपराएँ व आस्था भी भिन्न-भिन्न है लेकिन धीरे-धीरे कुछ परंपराएँ, अंधविश्वासों, कुरीतियों के रूप में बदल गई है, जिनके कारण आम लोगों को न केवल शारीरिक व मानसिक प्रताडऩा से गुजरना पड़ता है बल्कि ठगी का शिकार होना पड़ता है। कुछ चालाक लोग आम लोगों के मन में बसे अंधविश्वासों, अशिक्षा व आस्था का दोहन कर ठगते हैं। उन अंधविश्वासों व कुरीतियों से लोगों को होने वाली परेशानियों व नुकसान के संबंध में समझा कर ऐसे कुरीतियों का परित्याग किया जा सकता है। विभिन्न सामाजिक व चिकित्सा के संबंध में व्याप्त अंधविश्वासों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा देश के अनेक प्रदेश में विभिन्न प्रकार के अंधविश्वास प्रचलित हैं जो न केवल समाज की प्रगति में बाधक हैं बल्कि आम व्यक्ति के भ्रम को बढ़ाते हैं, उसके मन की शंका-कुशंका में वृद्धि करते हैं।
डॉ मिश्र ने कहा कि कालाजादू ,डायन जैसी मान्यताओ का कोई अस्तित्व नहीं है, अज्ञानता,चिकित्सा सुविधाओं की कमी जानकारी के अभाव,रूढि़वादी परम्पराओ के कारण इस प्रकार की घटनाएं घटती है,मध्यप्रदेश सहित देश के 17 प्रदेशों में डायन और जादू-टोने का अंधविश्वास बना हुआ है, जहाँ से महिला प्रताडऩा की घटनाएँ सामने आते रहती है। जादू-टोने का कोई अस्तित्व नहीं होता है और सिर्फ अपने अन्धविश्वास व् भ्रम के कारण किसी ही हत्या करना, मारना पीटना प्रताडि़त करना, गलत, गैरकानूनी, अमानवीय है जिनमें किसी महिला को जादू-टोना करके नुकसान पहुँचाने के संदेह में हत्या, मारपीट कर दी जाती है जबकि कोई नारी टोनही या डायन नहीं हो सकती। उसमें ऐसी कोई शक्ति नहीं होती जिससे वह किसी व्यक्ति, बच्चों या गाँव का नुकसान कर सके। जादू-टोने के आरोप में महिला प्रताडऩा रोकना आवश्यक है। अंधविश्वासों के कारण होने वाली डायन(टोनही) प्रताडऩा, सामाजिक बहिष्कार, बलि प्रथा जैसी घटनाओं से भी मानव अधिकारों का हनन हो रहा है।
बालोद। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सहयोग से राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर बालोद में आयोजित कार्यक्रम में व्याख्यान देते हुए प्रदेश के वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ एवं अन्धश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ.दिनेश मिश्र ने कहा वैज्ञानिक ढंग से सोचने, समझने एवं आचरण करने से समाज में वैज्ञानिक जागरूकता का विकास होगा. वैज्ञानिक जागरूकता के विकास से विभिन्न अंधविश्वासों व कुरीतियों का निर्मूलन संभव है। किसी व्यक्ति को अपनी बीमारी, समस्या या असफलता का दोष ग्रह-नक्षत्रों पर न थोपने की बजाय स्वयं की खामियों पर विश्लेषण करना चाहिए। कोरोना काल में सावधानी और सतर्कता ,गाइड लाइन का पालन करने से देश में कोरोना का संक्रमण जल्द ही नियंत्रण में आया,
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डॉ मिश्र ने कहा कि कालाजादू ,डायन जैसी मान्यताओ का कोई अस्तित्व नहीं है, अज्ञानता,चिकित्सा सुविधाओं की कमी जानकारी के अभाव,रूढि़वादी परम्पराओ के कारण इस प्रकार की घटनाएं घटती है,मध्यप्रदेश सहित देश के 17 प्रदेशों में डायन और जादू-टोने का अंधविश्वास बना हुआ है, जहाँ से महिला प्रताडऩा की घटनाएँ सामने आते रहती है। जादू-टोने का कोई अस्तित्व नहीं होता है और सिर्फ अपने अन्धविश्वास व् भ्रम के कारण किसी ही हत्या करना, मारना पीटना प्रताडि़त करना, गलत, गैरकानूनी, अमानवीय है जिनमें किसी महिला को जादू-टोना करके नुकसान पहुँचाने के संदेह में हत्या, मारपीट कर दी जाती है जबकि कोई नारी टोनही या डायन नहीं हो सकती। उसमें ऐसी कोई शक्ति नहीं होती जिससे वह किसी व्यक्ति, बच्चों या गाँव का नुकसान कर सके। जादू-टोने के आरोप में महिला प्रताडऩा रोकना आवश्यक है। अंधविश्वासों के कारण होने वाली डायन(टोनही) प्रताडऩा, सामाजिक बहिष्कार, बलि प्रथा जैसी घटनाओं से भी मानव अधिकारों का हनन हो रहा है।
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